Thursday, 29 September 2016

मयख़ाने

जवानी हुस्न मयख़ाने लबौ रूख़सार बिकते हैं
हया के आईने भी अब सरे बाज़ार बिकते हैं...

शराफत ज़र्फ हमदर्दी दिलों से हो गयी रुख़सत
जहां दौलत चमकती है वहीं किरदार बिकते हैं...

वहां हथियार बिकने का अजब दस्तूर निकला है
हमारे गांव में अब तक गुलों के हार बिकते हैं...

हमारे रहनुमाओं को हुआ क्या है ख़ुदा जाने
कभी इस पार बिकते हैं कभी उस पार बिकते हैं...

ज़रा खुद सोचिए हम पर तबाही क्यूं ना आएगी
यह दौर ऐसा है जिसमें कौम के किरदार बिकते हैं...

No comments:

Post a Comment