Friday 9 June 2017

ग़ज़ल: बशीर बद

*ग़ज़ल: बशीर बद्र*

खुद को इतना भी मत बचाया कर,
बारिशें हो तो *भीग जाया कर*।

चाँद लाकर कोई नहीं देगा,
अपने चेहरे से *जगमगाया कर*।

दर्द हीरा है, दर्द मोती है,
दर्द आँखों से *मत बहाया कर*।

काम ले कुछ हसीन होंठो से,
बातों-बातों में *मुस्कुराया कर*।

धूप मायूस लौट जाती है,
छत पे *किसी बहाने आया कर*।

कौन कहता है दिल मिलाने को,
कम-से-कम *हाथ तो मिलाया कर*।

Wednesday 7 June 2017

नाज

*निगाहें नाज करती है ..*
               *फलक के आशियाने से.. !*

*"खुदा भी रूठ जाता है "*
                *किसी का दिल दुखाने से ...।*