Wednesday 26 April 2017

बेईमान

*कमियाँ तो मुझमें भी बहुत है,*
                      *पर मैं बेईमान नहीं।*

*मैं सबको अपना मानता हूँ,*
     *सोचता हूँ फायदा या नुकसान नहीं।*

*एक शौक है शान से जीने का,*
           *कोई और मुझमें गुमान नहीं।*

*छोड़ दूँ बुरे वक़्त में अपनों का साथ,*
                  *वैसा तो मैं इंसान नहीं।*

Friday 21 April 2017

ताल्लुक़ात

I*यूँही छोटी सी बात पर*
*ताल्लुक़ात बिगड़ जाते है*

*मुद्दा होता है "सही क्या है"*
*और लोग "सही कौन" पर उलझ जाते है*

Tuesday 18 April 2017

दुपहरी

*बचपन में, भरी दुपहरी में नाप आते थे पूरा मुहल्ला,*
*जब से डिग्रियाँ समझ में आई, पाँव जलने लगे।।।।।*