हिंदी उर्दू शायरी कविताएं गम प्रेम बिरह के नग्मे शेरकवि
*बचपन में, भरी दुपहरी में नाप आते थे पूरा मुहल्ला,* *जब से डिग्रियाँ समझ में आई, पाँव जलने लगे।।।।।*
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