Sunday 26 February 2017

माँ के साथ

मायका सिर्फ़ और सिर्फ़ माँ के साथ होता है
माँ थीं तो मोहल्ले भर को मेरे आने का पता होता था
माँ थीं तो बने होते थे राजमाह चावल पुदीने की चटनी
माँ थीं तो बिलकुल बुरा नहीं लगता था
बिस्तर में लेटे रहना , सुस्ताना , टी वी देखना , चाय पीना
माँ थीं तो अपने साथ साथ मेरे लिए भी डाल लेती थीं आम का अचार साल भर के लिए
ले लेती साल भर के लिए देसी चावल
जब छोटे छोटे बच्चों के साथ जाती
तो कहती
भूल जाओ सब , आनंद करो , मस्ती करो
सब मैं संभाल लूँगी
मेरे घर आती तो सब बनेरों पे पड़े होते धुले हुए चादर खेस लिहाफ़
सारे मोहल्ले को पता होता माँ आईं हैं
निहायत बुरे वक्तों में सीने में मेरा मुँह छुपा लेती
और कहती
मैं हूँ न
बुरा सपना आता तो सुबह बस पकड़ आती
देखती मैं ठीक हूँ तो शाम को लौट जातीं
हाँ , काफ़ी छुपाती थी मैं अपने दर्द उन से
पर माँ की आँखें तो तस्वीर में भी भाँप जाती है दर्द
गईं तो मेरा मायका भी साथ ले गईं
एक बार गई मैं तो बाहर वाले कमरे में बैठ घंटों रोती रही
किसी को ख़बर तक न पड़ी मेरे आने की
फिर सालों साल उस शहर में क़दम पड़े ही नहीं
वो रास्ते यूँ जैसे नाग फ़न फैलाए बैठे हों
सोचा था , अब धुँधला पड़ने लगा है सब
अब जाने लगी हूँ उस शहर
ख़रीदारी भी कर लेती हूँ वहाँ
माँ थीं तो ज़रूरी होता था शॉपिंग पे जाना
नहीं तो पूछतीं
कोई बात है
उदास हो क्या
पैसे मुझ से ले लो
कुछ बचा कर रखे हैं तुम्हारे बाबू जी से परे
नहीं , पर कुछ भी धुँधला नहीं पड़ा है
पालती मार कर बैठा था कहीं ज़िंदगी की व्यस्तता में
कहीं एक शब्द पढ़ा
तो ज़ार ज़ार फूट पड़ा सब

कोई भी दर्द क्या मर पाता है कभी पूरी तरह
यूँ तो सब ठीक है
पर काश माँ को कोई दर्द न देती
काश उनका दर्द बाँट लेती
काश उनके लिए ढेरों सूट गहने ख़रीद पाती
काश उन्हें घुमाने ले जा पाती
काश उन्होंने कभी जो देखे थे ख़्वाब पूरे कर पाती

पर यह काश भी तो ख़ुद माँ बन कर ही समझ आता है
इतनी देर से क्यों समझ आता है ?

Wednesday 22 February 2017

खुशियाँ कम और अरमान बहुत हैं

*खुशियाँ कम और*
         *अरमान बहुत हैं ।*
*जिसे भी देखो,*
         *परेशान बहुत है ।।*
*करीब से देखा तो,*
      *निकला रेत का घर ।*
*मगर दूर से इसकी,*
               *शान बहुत है ।।*
*कहते हैं सच का,*
      *कोई मुकाबला नहीं ।*
*मगर आज झूठ की,*
           *पहचान बहुत है ।।*
*मुश्किल से मिलता है,*
             *शहर में आदमी ।*
*यूं तो कहने को,*
             *इन्सान बहुत हैं ।।*

Tuesday 21 February 2017

ज़िन्दगी भर की पहचान

☘☘☘☘
              मिलो किसी से ऐसे कि
                 ज़िन्दगी भर की
                पहचान बन जाये,
          पड़े कदम जमीं पर ऐसे कि
                 लोगों के दिल पर
                 निशान बन जाये..
              जीने को तो ज़िन्दगी
            यहां हर कोई जी लेता है,
                      लेकिन.....
             जीयो ज़िन्दगी ऐसे कि
            औरों के लब की मुस्कान
                    बन जाये ...                                                   
     
     

Thursday 16 February 2017

यादों के रिश्ते

*कितने अनमोल होते है, ये यादों के रिश्ते भी....*

*कोई याद ना भी करे चाहत फिर भी रहती है..*

रुक जाये वक़्त

"जिंदगी में तुमसे एक लम्बी मुलाकात हो,
मिलकर साथ बैठे हम और लम्बी बात हो,
करने को सिर्फ तेरी - मेरी बात हो....
रुक जाये वक़्त फिर दिन हो न रात हो. "

ज़ख्म का इलाज..

खूब करता है, वो मेरे ज़ख्म का

इलाज..

कुरेद कर देख लेता है रोज,और

कहता है वक्त लगेगा..

गुफ्तगु

उनकी तासीर बेहद कड़वी होती है,,,
जिनकी गुफ्तगु शक्कर जैसी होती है,,,

जीवन परीक्षा लेती है।

जीवन परीक्षा लेती है

और चेक रिश्तेदार करते हैं

नफ़रत

इश्क का हफ़्ता गुज़र गया.

नफ़रत का पूरा साल बाकी है..

Friday 10 February 2017

तेरे रुख़सार पर !!

काश ! आ जाती तुम वोट डालने के बहाने,
तेरी आँखों में हम प्यार पढ़ लेते,
पहचान करने के बहाने !
-मतदान अधिकारी प्रथम

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काश ! आ जाती तुम वोट डालने के बहाने,,,
हाथ पर दिल का हाल लिख देते,
स्याही लगाने के बहाने !!
-मतदान अधिकारी द्वितीय

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काश तुम आ जाती वोट डालने के बहाने,
तेरे हाथों को थाम लेते, गुलाबी पर्ची थामने के बहाने !
-मतदान अधिकारी तृतीय

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ऐ काश ! कोई तो अभिकर्ता चुनौती दे-दे तेरी पहचान पर,,
हम जी भर के मिलान करते तेरी आई-डी से तेरे रुख़सार पर !!
-पीठासीन अधिकारी

*मतदान पूर्ण*

Thursday 2 February 2017

अख़बार

*एक अख़बार क्या लिया सफ़र में....*

*सारे मुसाफिरों से रिश्ता निकल आया !!*