Saturday 26 August 2017

यही जिंदगी है...

विनोद खन्ना द्वारा लिखी गई आत्मकथा की खूबसूरत पंक्तियां ....

*"जब मुझे पर्याप्त आत्मविश्वास मिला.... तो मंच खत्म हो चुका था"....*

*"जब मुझे हार का यकीन हो गया तब मैं जीता......"*

*"जब मुझे लोगों की जरूरत थी... उन्होंने मुझे छोड़ दिया...."*

*"जब रोते हुये मेरे आँसू सूख गए.... तो मुझे सहारे के लिए कंधा मिल गया...."*

*"जब मैंने नफरत की दुनिया में जीना सीख लिया... किसी ने मुझे दिल की गहराई से प्यार करना शुरु कर दिया...."*

*"जब सुबह का इंतजार करते करते मे सोने लगा... सूर्य निकल आया....."*

यही जिंदगी है...
कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या योजना बना रहे हैं आप कभी भी नहीं जान पाते हैं कि जीवन आपके लिए क्या योजना बना रहा है...
इसलिए हमेशा खुश रहो!!
अक्सर जब हम आशा खो देते हैं और लगता है कि यह अंत है भगवान ऊपर से मुस्कराते हैं और कहते हैं कि
शांत रहो वत्स...यह सिर्फ एक मोड़ है अंत नहीं...!!!

जवाब

"जब" "कोई" "तुम्हारा" "दिल" "दुखाये" "मजाक" "उड़ाए'
"तो" "चुप" "रहना" "बेहतर" "है",
"क्योंकि" "जिन्हें" "हम" "जवाब" "नहीं" "देते"...
"उन्हें" *वक्त* "जवाब" "जरुर" "देता" "है"!!
       
"जीवन" "का" "सबसे" "बड़ा" "गुरु" *वक्त* "होता" "है",
"क्योंकि" "जो" *वक्त* "सिखाता" "है"...
"वो" "कोई" "नहीं" "सीखा" "सकता"!!
       
"अपनापन" "तो" "हर" "कोई" "दिखाता" "है",
"पर" "अपना" "कौन" "है"...
"ये" "तो" *वक्त* "बताता" "है"!!
      
"किसी" "की" "मजबूरियाँ" "पे" "ना" "हँसिये"...
"कोई" "मजबूरियाँ" "ख़रीद" "कर" "नहीं" "लाता",
"डरिये" *वक्त* "की" "मार" "से"...
"बूरा" *वक्त* "किसी" "को" "बताकर" "नहीं" "आता"!!
        
"सदा" "उनके" "कर्जदार" "रहिये", "जो" "आपके" "लिये"...
"कभी" "खुद" "का" *वक्त* "नहीं" "देखते"!!
         
*वक्त* "की" "यारी" "तो" "हर" "कोई" "करता" "है" "मेरे" "दोस्त",
"मजा" "तो" "तब" "है"...
"जब" *वक्त* "बदल" "जाए" "और" "यार" "ना" "बदले"!!
       
"एक-दुसरे" "के" "लिये"...
"जीने" "का" "नाम" "ही" "जिंदगी" "है", "इसलिये" *वक्त* "उन्हें" "दो"...
"जो" "तुम्हें" "चाहते" "हैं" "दिल" "से"!!
             
www.sherkavi.blogspot.in
        

मुकद्दर

चूम लिया करो
हर गम को मुकद्दर मानकर
यारों...
जिंदगी जैसी भी है
आखिर है तो अपनी ही...!!!

Saturday 12 August 2017

खैरीयत

*खैरीयत पूछने का ज़माना गया साहब*

*आदमी ऑनलाइन दिख जाये*

*तो समझ लेना सब ठीक हैं ।*

रुठने का हक

*रुठने का हक़ तो अपने ही देते हैं...*
परायों के सामने तो मुस्कुराना ही पड़ता है..

हालात

रिश्तो को वक़्त और हालात बदल देते हैं,

अब तेरा ज़िक्र होने पर हम बात बदल देते हैं।

जख्म

कांटों से क्या गिला वो तो
          मजबूर हैं अपनी फितरत से

तकलीफ तो तब हुई जब
          फूल भी जख्म देने लगे

शमशीर

कुछ पन्ने इतिहास के मेरे मुल्क के
सीने में शमशीर हो गए
जो लड़े ,जो मरे ,वो शहीद हो गए,
जो डरे,जो झुके ,वो वज़ीर हो गए

बिछड़ना

ऐसा करो, बिछड़ना है तो, रूह से निकल जाओ,
रही बात दिल की, उसे हम देख लेंगे..

ख़्यालों में

*यूं ही ख़्यालों में चले आया करो*,

*ना पकड़े जाने का खतरा, ना जाने की जल्दी.....rc*

रफ़ू दिल

वो दिल हमारा, तार - तार करते है
हम भी रफ़ू दिल, बार-बार करते है

क़द्र

"वफाओं" से "मुकर" जाना हमे "आया" नहीं अब तक...!!
जिन्हें "चाहत" की "क़द्र" नहीं  हम उनसे "ज़िद" नहीं करते..

शेरो-नगमा

कहीं शेरो-नगमा बन के
कहीं आँसुओं में ढल के,
वो मुझे मिले तो लेकिन
कई सूरतें बदल के।

सम्भल गए

जब से देखा है कि,,,,,,,,,,,,,,,,वो बदल से गए है!!!!!!

तब से हम भी साहिब,,,,,,,,,,,,,,,,,कुछ सम्भल गए है.!!!!

Wednesday 9 August 2017

चेहरों के लिये आईने कुर्बान

"चेहरों के लिये आईने कुर्बान किए हैं
इस शौक़ में अपने कई नुकसान किए हैं...

महफ़िल में मुझे गालियाँ देकर बहुत ख़ुश है
जिस शख़्स पे मैंने कई एहसान किए हैं...

ख़्वाबों से निपटना है मुझे रतजगे करके
कमबख़्त कई दिन से परेशान किए हैं...

रिश्तों के, मरासिम के, मुहब्बत के, वफा के
कुछ शहर तो ख़ुद हमने ही वीरान किए हैं...

Sunday 6 August 2017

बिकी तेरी दोस्ती

```मैनें मेरे एक दोस्त को फोन किया और कहा कि यह मेरा नया नंबर है, सेव कर लेना।

उसने बहुत अच्छा जवाब दिया और मेरी आँखों से आँसू निकल आए ।

उसने कहा तेरी आवाज़ मैंने सेव कर रखी है। नंबर तुम चाहे कितने भी बदल लो, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं तुझे तेरी आवाज़ से ही पहचान लूंगा।

ये सुन के मुझे हरिवंश राय बच्चनजी की बहुत ही सुन्दर कविता याद आ गई....

"अगर बिकी तेरी दोस्ती तो पहले खरीददार हम होंगे।
तुझे ख़बर ना होगी तेरी कीमत, पर तुझे पाकर सबसे अमीर हम होंगे॥

"दोस्त साथ हों तो रोने में भी शान है।
दोस्त ना हो तो महफिल भी शमशान है॥"

"सारा खेल दोस्ती का हे ए मेरे दोस्त,
                  वरना..
जनाजा और बारात एक ही समान है।"```

*सारे दोस्तों को समर्पित.!*