हिंदी उर्दू शायरी कविताएं गम प्रेम बिरह के नग्मे शेरकवि
कांटों से क्या गिला वो तो मजबूर हैं अपनी फितरत से
तकलीफ तो तब हुई जब फूल भी जख्म देने लगे
No comments:
Post a Comment