....कश्मीर पर इतनी सटीक पंक्तियाँ.... दूसरी नही हो सकती....!!
"ताउम्र जन्नत में रह कर, उसे उजाड़ने में गुज़ार दी,
और जिहाद बस इस बात की थी, ... कि मरने के बाद जन्नत मिले...".........
Saturday, 24 December 2016
जन्नत
Thursday, 22 December 2016
मोहब्बत की चादर
मज़हब, दौलत, ज़ात, घराना, गैरत, खुद्दारी....
एक मोहब्बत की चादर को कितने चूहे कुतर गए....
गालिब फरमाते हैं,
गालिब फरमाते हैं,
चली जाती हैं आए दिन वो ब्यूटी पार्लर में यूं ,
उनका मकसद है मिसाले-हूर हो जाना।
मगर ये बात किसी बेग़म की समझ में क्यूं नहीं आती,
कि मुमकिन ही नहीं किशमिश का फिर से अंगूर हो जाना।
वो कहानी
वो कहानी थी,
चलती रही...
मै किस्सा था,
खत्म हुआ...
चालाकी का हुनर
मुझे भी बता दो ये चालाकी का हुनर दोस्तो...।
लोग ठग लेते है अक्सर मुझे, जरा सा मीठा बोलकर...।
तेरा खुदा
मेरा झुकना और तेरा खुदा हो जाना ।
यार अच्छा नहीं, इतना बड़ा हो जाना ।।
Wednesday, 21 December 2016
हर मुश्किल
किस्मत में लिखी हर मुश्किल
टल जाती है,
अगर हो बुलन्द हौसले तो
मंजिल भी मिल जाती है,
सिर उठा कर ऐक बार
आसमान को तो देख लो,
फिर गगन को छूने की
प्रेरणा भी मिल जाती है॥
सुप्रभातम्
बेवफाई
बेवफाई उसकी दिल से मिटा के आया हूँ,
ख़त भी उसके पानी में बहा के आया हूँ,
कोई पढ़ न ले उस बेवफा की यादों को,
इसलिए पानी में भी आग लगा कर आया हूँ।
तजुर्बे ने एक बात सिखाई है...
"जब मुझे यकीन है के भगवान मेरे साथ है।
तो इस से कोई फर्क नहीं पड़ता के कौन कौन मेरे खिलाफ है।।" ...
तजुर्बे ने एक बात सिखाई है...
एक नया दर्द ही...
पुराने दर्द की दवाई है...!!
हंसने की इच्छा ना हो...
तो भी हसना पड़ता है...
कोई जब पूछे कैसे हो...??
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है..
ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों....
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है.
"माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती..
यहाँ आदमी आदमी से जलता है...!!"
मंदिर में फूल चढ़ा कर आए तो यह एहसास हुआ कि...
पत्थरों को मनाने में,
फूलों का क़त्ल कर आए हम।
गए थे गुनाहों की माफ़ी माँगने ....
वहाँ एक और गुनाह कर आए हम ....
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन
क्यूंकिएक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.
एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!
सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!
सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब....
बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |
जीवन की भाग-दौड़ में -
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम
और
आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..
कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते..
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते..
लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है,
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..
"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह
करता हूँ..
चाहता तो हु की ये दुनियाबदल दू ....
पर दो वक़्त की रोटी केजुगाड़ में फुर्सत नहीं मिलती दोस्तों
युं ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे .
पता नही था की, 'किमत चेहरों की होती है!!'
अगर खुदा नहीं हे तो उसका ज़िक्र क्यों ??
और अगर खुदा हे तो फिर फिक्र क्यों ???
"दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं,
एक उसका 'अहम' और दूसरा उसका 'वहम'..
" पैसे से सुख कभी खरीदा नहीं जाताऔर दुःख का कोई खरीदार नहीं होता।"
हिसाब
किसी की गलतियों को बेनक़ाब ना कर,
'ईश्वर' बैठा है, तू हिसाब ना कर