Wednesday, 12 July 2017

रहनुमाईया

चलो खुद ही करें रहनुमाईया अपनी

हर किसी को पार उतरने की जुस्तजू अपनी
न बादबा न समंदर न कश्तियां अपनी.....

कागज की दौलत

  

         *वो कागज की दौलत ही क्या*
           *जो पानी से गल जाये और*
             *आग से जल जाये*

         *दौलत तो दुआओ की होती हैं*
            *न पानी से गलती हैं*
              *न आग से जलती हैं...*                                                                                                       
         *आनंद लूट ले बन्दे,*
           *प्रभु की बन्दगी का।*
             *ना जाने कब छूट जाये,*
               *साथ जिन्दगी का।।*
    

इल्मो अदब

*इल्मो अदब के सारे खजाने गुजर गए*
*क्या खूब थे वो लोग पुराने गुजर गए।*

*बाकी है जमीं पे फकत आदमी की भीड़*
*इन्सां को मरे हुए तो ज़माने गुजर गए...*

Friday, 9 June 2017

ग़ज़ल: बशीर बद

*ग़ज़ल: बशीर बद्र*

खुद को इतना भी मत बचाया कर,
बारिशें हो तो *भीग जाया कर*।

चाँद लाकर कोई नहीं देगा,
अपने चेहरे से *जगमगाया कर*।

दर्द हीरा है, दर्द मोती है,
दर्द आँखों से *मत बहाया कर*।

काम ले कुछ हसीन होंठो से,
बातों-बातों में *मुस्कुराया कर*।

धूप मायूस लौट जाती है,
छत पे *किसी बहाने आया कर*।

कौन कहता है दिल मिलाने को,
कम-से-कम *हाथ तो मिलाया कर*।

Wednesday, 7 June 2017

नाज

*निगाहें नाज करती है ..*
               *फलक के आशियाने से.. !*

*"खुदा भी रूठ जाता है "*
                *किसी का दिल दुखाने से ...।*

Wednesday, 24 May 2017

इश्क़ मासूम है

इश्क़ मासूम है गीता के उजालों की तरह,

हुस्न पाकीज़ा है मीरा के ख्यालों की तरह।

कृष्ण होते तो ज़रूर इनको ज़ुबां दे देते,

मेरे आंसू हैं सुदामा के सवालों की तरह।।

वो शहर भी तेरा

*‍वो मोहब्बत भी तेरी थी वो_*
*_नफरत भी तेरी थी_*

*_वो अपनापन और ठुकराने_*
*_की अदा भी तेरी थी_*

*_हम अपनी वफ़ा का इंसाफ_*
*_किससे मांगते_*

*_वो शहर भी तेरा था और_*
*_अदालत भी तेरी थी_*

शहर में आदमी

*खुशियाँ कम और अरमान बहुत हैं ।*
*जिसे भी देखो परेशान बहुत है ।।*

*करीब से देखा तो निकला रेत का घर ।*
*मगर दूर से इसकी शान बहुत है ।।*

*कहते हैं सच का कोई मुकाबला नहीं ।*
*मगर आज झूठ की पहचान बहुत है ।।*

*मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी ।*
*यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं ।।*
       
       

लिबास-ए-ज़िन्दगी

*लिबास-ए-ज़िन्दगी को थोड़ा रफ़ू कर दे ए खुदा,*

*कोई राज़ निकल न जाए कोई ऐब खुल न जाए।*

Friday, 5 May 2017

ऐतबार


*छोड़ दिए हम ने ऐतबार*
*किस्मत की लकीरों पे.*!
       *जो दिल में बस जाएँ वो*
   *लकीरों में नहीं मिला करते*
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*जिंदगी में अपनेपन और*
*एहसासों का बड़ा काम*
*होता है...*
*दूसरों के गमो को जो*
*अपनाता है वही इंसान*
*होता है...*
*न जाने कब कोई अँधेरे में*
*चिराग बनकर राह दिखा दे..*

*क्योंकि मुसीबत में जो साथ*
*होता है वही भगवान होता है*