इश्क़ मासूम है गीता के उजालों की तरह,
हुस्न पाकीज़ा है मीरा के ख्यालों की तरह।
कृष्ण होते तो ज़रूर इनको ज़ुबां दे देते,
मेरे आंसू हैं सुदामा के सवालों की तरह।।
इश्क़ मासूम है गीता के उजालों की तरह,
हुस्न पाकीज़ा है मीरा के ख्यालों की तरह।
कृष्ण होते तो ज़रूर इनको ज़ुबां दे देते,
मेरे आंसू हैं सुदामा के सवालों की तरह।।
*वो मोहब्बत भी तेरी थी वो_*
*_नफरत भी तेरी थी_*
*_वो अपनापन और ठुकराने_*
*_की अदा भी तेरी थी_*
*_हम अपनी वफ़ा का इंसाफ_*
*_किससे मांगते_*
*_वो शहर भी तेरा था और_*
*_अदालत भी तेरी थी_*
*खुशियाँ कम और अरमान बहुत हैं ।*
*जिसे भी देखो परेशान बहुत है ।।*
*करीब से देखा तो निकला रेत का घर ।*
*मगर दूर से इसकी शान बहुत है ।।*
*कहते हैं सच का कोई मुकाबला नहीं ।*
*मगर आज झूठ की पहचान बहुत है ।।*
*मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी ।*
*यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं ।।*
*लिबास-ए-ज़िन्दगी को थोड़ा रफ़ू कर दे ए खुदा,*
*कोई राज़ निकल न जाए कोई ऐब खुल न जाए।*
*छोड़ दिए हम ने ऐतबार*
*किस्मत की लकीरों पे.*!
*जो दिल में बस जाएँ वो*
*लकीरों में नहीं मिला करते*
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*जिंदगी में अपनेपन और*
*एहसासों का बड़ा काम*
*होता है...*
*दूसरों के गमो को जो*
*अपनाता है वही इंसान*
*होता है...*
*न जाने कब कोई अँधेरे में*
*चिराग बनकर राह दिखा दे..*
*क्योंकि मुसीबत में जो साथ*
*होता है वही भगवान होता है*
*कमियाँ तो मुझमें भी बहुत है,*
*पर मैं बेईमान नहीं।*
*मैं सबको अपना मानता हूँ,*
*सोचता हूँ फायदा या नुकसान नहीं।*
*एक शौक है शान से जीने का,*
*कोई और मुझमें गुमान नहीं।*
*छोड़ दूँ बुरे वक़्त में अपनों का साथ,*
*वैसा तो मैं इंसान नहीं।*
I*यूँही छोटी सी बात पर*
*ताल्लुक़ात बिगड़ जाते है*
*मुद्दा होता है "सही क्या है"*
*और लोग "सही कौन" पर उलझ जाते है*
*बचपन में, भरी दुपहरी में नाप आते थे पूरा मुहल्ला,*
*जब से डिग्रियाँ समझ में आई, पाँव जलने लगे।।।।।*
तेरी मर्जी से ढल जाऊं हर बार ये मुमकिन नहीं..!
..........मेरा भी वजूद है,मैं कोई आइना नहीं..!!
"प्यार"... गहरा हो या न हो...
पर "भरोसा".... "बहुत गहरा होना चाहिये"... ❤