Saturday 10 December 2016

कटता नहीं है

कटता नहीं है दिन मेरा इस दो ह़जार में
कब तक मिलेगी पान-ओ- बीड़ी उधार में

बुलबुल को बैंक से है न मोदी से है गिला
किस्मत में कैद थी लिखी फ़स्ले बहार में

कह दो इन शादियों से अभी और कुछ टलें
कितना हम बांटे न्योता अब दो हज़ार में 

इक शाख़-ए-गुल पे बैठ के जेटली है शादमां
कांटे बिछा दिए हैं दिल-ए-लालाज़ार में

बैंक से हम आज जुगाड़ के लाये थे चार नोट
दो बीवी ने झटक लिए, दो गए उधार में

दिन आज का भी ख़त्म हुआ शाम हो गई
सोऊंगा आज रात भी मैं बैंक की कतार में

कितना है बदनसीब "ज़फ़र" नोट के लिये
पीटा है ATM गार्ड ने,  कू-ए-यार में

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