Thursday 20 October 2016

कसूर


*नजरें तुमको ही देखना चाहें*
*तो मेरी आँखों का क्या कसूर है?*

*खुशबू तुम्हारी ही आए*
*तो मेरी सांसों का क्या कसूर है?*

*वैसे तो सपने*
*पूछ कर नहीं आते*

*सपने ही तुम्हारे आएं*
*तो मेरी रातों का क्या कसूर है?*

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